बुद्धि की ताक़त
hindi kahaniyan बीरवल की कहानी |
दोस्तों नमस्कार हम आपको बताने बाले हैं तानसेन और बीरवल की Hindi Kahani एक बार अकबर की सभा में Comptition प्रतियोग्ता हुई की तानसेन बड़े की बीरवल बड़े !
दो गुट बन गए ! तानसेन के राग पर जो मोहित हो जाते वह बोलते की तानसेन बड़े हैं ! और जो बीरवल की बुद्धि की कद्र करते थे वह बोलते की बीरवल बड़े हैं !
आखिर बात आयी अकबर के दरवार में ! दोनों गुटों के लोगो ने कहा , राजा साहब ( अन्नदाता ) जो फरमान करेंगे उसी बात से दोनों गुटों के लोग स्वीकार करेंगे !
आज तक कोई भी समस्या आती तो सब लोग थक जाते हार जाते तब अकबर बीरवल की तरफ निहारता और बीरवल हल बता देते थे ! लेकिन आज अकबर को बीरवल के लिए फेसला देना हैं !
अकबर सोचता हैं अगर फेंसला बीरवल के खिलाफ देता हूँ तो बीरवल नाराज हो जायेगा !और अगर तानसेन के खिलाफ देता हूँ वह नाराज हो जायेगा ! अकबर बीरवल को भी नाराज नहीं करना चाहता और तानसेन को भी नाराज नहीं करना चाहता था !
अकबर सोचता हैं अब क्या करूँ ! आखिर राजा था राजनीतिज्ञ था उसने चुहे ने बिल्ली को मारा ,बाला तरीका अपनाते हुए कहा ! भाई इन दोनों महारथियों का न्याय उदयपुर के जो rana हैं वही करेंगे rana जी जो भी न्याय करेंगे वह तुमको और हमको सबको स्वीकार करना पड़ेगा !
अकबर दोनों को नाराज नहीं करना चाहता था इसलिए राणाजी के सिर पर पगड़ी पहना दी !वीरबल और तानसेन दोनों उदयपुर के राणाजी के पास गए फरमान लेकर !अकबर ने लिखा था की इन दोनों में जो श्रेष्ठ हो उसका नाम लिख कर आप भेजेंगे तो आपका वह निर्णय हमें स्वीकार हैं !
राणाजी ने पत्र पढकर दोनों से कहा !अच्छा आप अपनी योग्यता दिखायेंगे ! भरी सभा में तानसेन ने तो तानपुरे पर उँगलियाँ रख दी और माँ सरस्वती जी की आराधना करना शुरू कर दी !
उसके कंठ ,ताल गीत ,शब्दों की रचना से लोग डोलने लग गए !पूरी सभा में उसका प्रभाव जम गया !बीरवल ने देखा की यह बाजी मार गया !सबको प्रभावित कर दिया !
लेकिन फिर भी बुद्धि के सहारे जीने बाला व्यक्ति निराश हताश नहीं होता ! बीरवल ने गुरुमंत्र का चिंतन सुमरन करके बीरवल ने अंदर थोडा गोता मारा और बुद्धि प्रज्ञा का प्रकाश हुआ !
तानसेन के तम्बूरे के तार के स्वर चुप हुए !राणाजी ने बीरवल की और नजर डाली आप अपनी योग्यता दिखाईये !
बीरबल ,हुजुर मेरे में कोई योग्यता नहीं हैं !में अपनी हार स्वीकार कर लेता हूँ लेकिन ..
आश्चर्य जिस बीरबल ने कभी हार नहीं मानी बह कह रहा हैं की में अपनी हार स्वीकार करता हूँ ,उधर तानसेन ने अपनी गायन कला की प्रस्तुति की जिससे उदयपुर के राणाजी की सभा प्रभाबित हो गई !
फिर राणाजी जी ने बीरबल को अवसर दिया ! बीरबल rana जी से बोले हुजुर ,मेरे में कोई योग्यता नहीं हैं में अपनी हार स्वीकार करता हूँ लेकिन मुझे अपसोस हैं की यदि तानसेन की जीत हो गई तो आपको १०० गोहत्या का पाप लगेगा !
राणाजी चोंक गए ,बोले १०० गोहत्या का पाप ! और मुझे ? '
हाँ क्या करूँ ? में हारू तो मुझे चिंता नहीं हैं लेकिन हमारे राणाजी को १०० गोहत्या के पाप के भागी हो ! इस बात से में चिंतित हूँ !
अब में अपना परिचय क्या दू ? में कुछ नहीं बोलता हूँ !में उसी चिंता में खोया हूँ
राणाजी बोले यह कैसे !बीरवल बोले दाता हम जब आये थे तब हमारी आपस में बात हुई थी !मैने कहा था !में अगर जीतूँगा तो १०० गायें का दान करूँगा ! तब तानसेन ने कहा में अगर जीता तो १०० गाये कुर्बान करूँगा क़त्ल करायुंगा !अब ये जित गए १०० गोहत्या का पाप आपको लगेगा !''
सारी सभा के लोगो का ध्यान राग में लगा था वहा से हटकर बुद्धि में पहुँचा !बीरवल बुद्दि मान थे बुद्धि की गहराई में पहुंचे थे !
तब तानसेन की आंखे खुली और तानसेन बोला क्या बोलते हो !ऐसी बात तो हुई नहीं थी ! हुजुर !अन्नदाता !यह केबल बनावटी बोलता हैं ! झूठ बोलता हैं !
तानसेन क्रोध में आ गया तो बीरवल ने कहा !हुजुर अन्नदाता देखो ये क्रोधित हो रहे हैं ,दुःखी हो रहे हैं !भले ये सुखी हो लेकिन आप नरक में ना पड़ो ऐसा कोई रास्ता करो ! मेरी हार मुझे स्वीकार हैं !
राणाजी जी ने प्रमाण पत्र लिख दिया की तानसेन थोड़ी बात में तानसेन क्रोधित हो गए लेकिन बुद्धि मान बीरबल ने सब कुछ सुनते सहते हुए भी अपनी स्थिति बनाये रखी ! इसलिए तानसेन से बीरबल अधिक श्रेष्ठ हैं !
जब राणाजी की चिट्ठी अकबर के पास पहुँची तो वह भी इस निर्णय से बड़े खुश हुए ! और राणाजी की बड़ी सराहना की और कहा की हमें तुम्हारा निर्णय स्वीकार हैं
इस कहानी का सार ये है की हमारे पास कितनी भी योग्यता हो पर बुद्धि न हो तो हम सर्व श्रेष्ठ नहीं कहला सकते बुद्धि मान और बुद्दि से परे लोग महान लोग ही सर्व श्रेष्ठ हैं दोस्तों post अच्छी लगे तो श्रे जरुर करें