आरुणी  की  गुरु  भक्ति

Hindi Kahaniyan प्राचीनकाल में एक ऋषि थे जिनका नाम आयोद  धोम्य ऋषि था!पुरे आश्रम में भक्ति सेवा की सुवास ही दिन भर रहती थी उनके पवित्र  आश्रम में बहुत सारे शिष्य रहते थे !
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Hindi kahaniyan गुरु भक्ति

गुरुभक्तों की कहानियाँ



उनमे से एक अरुणी नाम का शिष्य था जो बड़ा ही नम्र सेवा भावी आज्ञा कारी था एक बार खूब वर्षा हुई खूब आंधी तूफान बहुत ही जायदा तेज था गुरूजी ने अरुणी को आश्रम के खेतो की देखभाल के लिए भेजा !
आरुणी ने खेत में जाकर देखा की खेत का पानी तो  सीमा तोड़ कर बाहर निकला जा रहा हैं थोड़ी देर में सब पानी खेत की सारी पाल को तोड़ देगा  और मिटटी बह जाएगी !
आरुणी ने सोचा क्या  करना चाहिए आरुणी ने जहाँ से पानी निकल रहा था,वहाँ मिटटी डालनी चालू कर दिया !पानी का वेग इतना तेज था की वह पानी रुक ही नहीं रहा था!

आखिर आरुणी जहाँ से पानी निकल रहा था वहाँ  पर स्वं ही लेट गए उनके शरीर के अबरोध के कारण बहता  पानी तो रुक गया लेकिन उसको उसी अवस्था में रात भर लेटे रहना पड़ा ! इस प्रकार उसने खेत की पूरी देखभाल की !
सुबह हुई तो सब प्रणाम करने गुरूजी के पास पहुंचे  तब गुरूजी को आरुणी नहीं दिखाई दिया गुरूजी  शिष्यों को साथ लेकर  आरुणी  की खोज में निकल पड़े खेत की तरफ और पुकार लगायी बेटा आरुणी !
बेटा आरुणी आरुणी ने गुरूजी की आवाज सुनी गुरूजी में यहाँ हूँ उसका शरीर तो ठंड से ठिटुर गया था आवाज बैठ दब गई फिर भी उठा और गुरुदेव को प्रणाम करके बोला क्या आज्ञा हैं 

गुरुदेव गुरु का हर्दय भर आया शिष्य की सेवा देखकर उनका दिल भर गया और दिल से बोले बेटा तू पढ़े बिना ही शास्त्रों में पारंगत हो जायोगे !जो पढोगे बही शास्त्र वन जायेगा गुरुभक्ति के द्वारा आरुणी के अंतर में शास्त्रों का ज्ञान अपने आप प्रकट होने लगा जब से ही उनका नाम गुरूजी ने उद्दालक रख दिया  धन्य हैं आरुणी की गुरुभक्ति
गुरुभक्ति की हिन्दी   


उपमन्यु की गुरुभक्ति की कहानी 


अयोध् धोम्य ऋषि का दूसरा एक शिष्य था जिसका नाम उपमन्यु था गुरु जी ने उससे  गाय चराने की सेवा दी !
सारा दिन गाय चराता और शाम को गायों के साथ आश्रम को पहुँच जाता उसका शरीर हष्ट पुष्ट देखकर गुरु ने एक दिन पूछा : 
बेटा तू रोज क्या खाता है !उपमन्यु बोला गुरुदेव भिक्षा में मुझे जो मिलता है वह खाता हूं गुरुजी बोले यह तो अधर्म है दीक्षा गुरु को अर्पण किए बिना तो नहीं खाना चाहिए! 
दूसरे दिन तक उपमन्यु  गायों को जंगल में छोड़ कर गांव से भिक्षा मांग कर ले आता और गुरुदेव के चरणों में अर्पित कर देता! गुरुदेव सारी भिक्षा रख लेते और उसे कुछ नहीं देते थे !

कुछ दिन बाद उपमन्यु को ऐसा ही तंदुरुस्त देखकर गुरुजी ने पूछा तो उसने बताया गुरुदेव एक बार भिक्षा मांगकर आपके चरणों में अर्पित कर देता हूं फिर दूसरी बार मांग कर स्वयं खा लेता हूं!
गुरु जी बोले दो-दो बार भिक्षा मागने से गृहस्थियों  का हक मारा जाता है यह तो उचित नहीं !गुरुदेव की आज्ञा भी उपमन्यु ने आदर पूर्वक स्वीकार की कुछ दिन बाद फिर उपमन्यु को उसके निर्वाह के बारे में पूछा तो क्या बोला प्रभु मैं गायों का दूध पीकर निर्वाह कर लेता हूं गुरु जी बोले  यह तो अधर्म हैं  गुरु की गायों का दूध गुरु की आज्ञा के बिना पी लेना तो चोरी हो गई ऐसा मत करो !

दूध पीना बंद होने के बाद उपमन्यु को तंदुरुस्त देखा तो फिर गुरु ने बुलाया ! और पूछने पर  उपमन्यु  बोला गाय का दूध जब बछड़े  पीते हैं तब थोड़ा सा फेन  आता है मैं उसे ही चाट कर संतोष कर लेता हूं !
गुरुजी बोले बेटा तुम को ऐसा करते देख कर तो बछड़े  ज्यादा फैन बाहर छोड़ते होंगे !और स्वयं भूखे रह जाते होंगे ऐसा करना तुम्हारे लिए योग्य नहीं है अब उपमन्यु के लिए भोजन के सब रास्ते बंद हो गए परंतु गुरु के प्रति भाव और श्रद्धा में लेश मात्र भी फर्क नहीं पड़ा गुरु द्वारा सौंपी गई सेवा चालू थी ! 
बहुत भूख लगती तो कभी किसी वृक्ष वनस्पति के पत्ते चवा  लेता और भूख मिटा लेता !
एक बार भूख से पीड़ित उपमन्यु भूल से आक पत्ते खा गया और अपनी आंखें को गबा बेठा रास्ता ना देखने के कारण वह एक कुएं में गिर पड़ा

शिष्य के कल्याण के लिए उसके जीवन को परिपख करने के  लिए बाहर से तो कठोर दिखने वाले और भीतर से फूल से भी कोमल कृपालु गुरुदेव ने जब गायों के पीछे उपमन्यु को लौटता हुआ नहीं देखा तो उसे ढूंढने के लिए स्वयं जंगल की ओर चल पड़े !

गुरूजी आवाज लगा रहे हैं गुरूजी की पुकार जंगल में गूंज उठी धन्य हैं उपमन्यु तू धन्य हैं  हजारों हजारों भक्त पूजा के समय जिन गुरूजी को पुकारते हैं!
वह तुझे  पुकार रहे धन्य हैं तेरी सेवा गुरु के मुख द्वारा अपने नाम का उच्चारण सुनकर कुएं में से उपमन्यु ने उत्तर दिया गुरुजी में यहां हूं!

कुए से आवाज सुनकर गुरूजी कुए के पास गए और कुए के पास आकर गुरुजी ने सारी हकीकत जानी और आंखों केउपचार के लिए देवों के देव अश्विनी कुमारों की स्तुति करने के लिए उपमन्यु को बोला उपमन्यु की प्रार्थना सुनकर अश्विनी कुमार प्रगट हुए!
और उसे आंखों की दवा के रूप में कोई मिठाई खाने को दी उपमन्यु बोला अब मुझसे गुरु की आज्ञा के बिना कुछ भी नहीं खाया जाए ! 

अश्विनी कुमार यह तो दवाई है इसे लेने में कोई हर्ज नहीं है अश्विनी कुमार ने उपमन्यु की आंखे ठीक कर दी उपमन्यु कुएं से बाहर आया और सब वृत्तांत गुरुदेव को कह सुनाया और उपमन्यु गुरु के चरणों में गिर पड़ा गुरुजी का हर्दय भर आया और उनके मुखारविंद से अमृत वचन के रूप में आशीर्वाद निकल पड़े बेटा तू वेद वेदांग का ज्ञाता धर्मावलंबी और महान पंडित बनेगा !

हुआ भी ऐसा ही लाख-लाख बंधन हो बाहर से कठोर देखते हुए अंदर से शिष्य का कल्याण करने वाले ब्रह्म रूप सतगुरुओ को और धन्य है !
ऐसी कठोर कसौटी में भी अडिंग रहकर प्रतिकार ना करने वाले एवं गुरु द्वारा मिलने वाले आध्यात्मिक अमृतसर को पचाकर पार हो जाने वाले उपमन्यु जेसे सत शिष्यों को ये गुरु भक्ति की अनमोल कहानियाँ हैं 
जी भी इन्हें पढ़े बह शेयर जरुर करे

 एकनाथ जी की गुरुभक्ति  

यह कहानी हैं एक महान  संत एकनाथ जी की जो जनार्दन जी के शिष्य थे १० बर्ष की उम्र में ही उन्होंने श्री गुरु चरणों में अपना जीवन समर्पित कर दिया था वह गुरूजी के कपडे धोते पूजा के लिए फुल लाते भोजन करते समय पंखा झलते गुरु के पुत्र की देखभाल करते उनके नाम आये !


हुए पत्र पढते और गुरु के संकेत अनुसार उनका जबाब देते ऐसे एवं अन्य भी कई प्रकार के छोटे मोटे काम  गुरूजी के करते थे ,

एक बार गुरूजी ने एकनाथ जी को दरबार का हिसाब करने को कहा ,एकनाथ जी हिसाब की बहिया लेकर हिसाब के लिए वैठ जाते और जब तक हिसाब पूरा न हो जाये 
तब तक एक नाथ जी उठते नहीं थे
क्युकि हिसाब सुबह पूरा राजदरबार में देना हैं

सारा दिन हिसाब किताब लिखने में बीत गया रात हुई नोंकर दीपक जलाकर चला गया  ,एकनाथ जी को मालूम ही नहीं की रात कब शुरू हो गई !

हिसाब में एक पाई की भूल आ रही थी आधी रात बीत गई फिर भी भूल पकड़ नहीं आ रही थी  एकनाथ जी अपने काम में बहुत ही ब्यस्त थे

सुबह जल्दी उठकर गुरूजी ने देखा की एकनाथ तो अभी भी हिसाब देख रहे हैं वे आकर दीपक के आगे चुपचाप खड़े हो गए बहियों पर थोडा अधेरा छा गया फिर भी एकनाथ जी एकाग्र चित से बहिया का हिसाब देखते रहे ,
बे अपने काम में इतना मशगुल थे की अँधेरे में भी उन्हें अक्षर साफ दिख रहे थे !

इतने में पाई की भूल पकड़ में आ गयी एकनाथ जी खुशी से चिल्ला उठे मिल गई ..

गुरुदेव ने पूछा कय मिल गई बेटा ?

एकनाथ जी चोक पड़े ऊपर देखा तो गुरूजी सामने खड़े हैं ,,

उठकर प्रणाम किया और बोले गुरुदेव एक पाई की भूल पकड़ में नहीं आ रही  थी अब वह मिल गई !"

हजारो के हिसाब में एक पाई की भूल !और उसको पकड़ने के लिए रात भर जागरण गुरु जी की सेवा में इतनी लगन ,इतनी तितिक्षा और भक्ति ब देखकर दीवान जनार्दन स्वामी के हर्दय में गुरु कृपा उछाल मरने लगी !

उन्हें सत शिष्य मिल गया सतगुरु की आध्यात्मिक बसीयत सम्हालने बाला सत शिष्य मिल गया !उसके बाद एकनाथ जी के हर्दय में ज्ञान का उदय हुआ!

और उनके सानिध्य से अनेको भक्तो ने आत्म ज्योति लगाकर धन्यता का अनुभव किया कभी कभी गोदावरी माता जी लोगो द्वारा डाले गए !

पाप धोने के लिए इन ब्रहम ज्ञानी के चरणों में पापा धोने के लिए  सत्संग में आती थी ! संत एक नाथ जी की एकनाथ भगवत को सुनकर आज भी कई लोग आत्म संतोष  प्राप्त करते हैं !

 

बाबा  फरीद की गुरुभक्ति


पाकिस्थान में बाबा फरीद के नाम के फ़कीर हो गए  वह अनन्य गुरुभक्त थे!गुरूजी की सेवा में उनका समय व्यतीत होता था एक बार उनके गुरु ख्वाजा बहाउद्दीन ने उनको किसी खास काम के लिए मुल्तान भेजा
बहा उन दिनों में शाह शम्स तव्रेज के शिष्यों ने अपने गुरु के नाम का एक दरवाजा वनाया था और घोषणा की थी आज इस दरवाजे से जो गुजरेगा वह जरुर स्वर्ग में जायेगा हजारो फ़कीर और गृहस्थ इस दरबाजे से गुजर रहे थे!
नश्वर शरीर का त्याग होने के बाद स्वर्ग में स्थान मिलेगा ऐसी ऐसी सबको आशा थी फरीद को उनके से गुजरने के लिए बहुत प्रार्थना की परन्तु फरीद तो उनको समझा बुझाकर अपना काम पूरा करके विना दरवाजे से गुजरे ही अपने गुरु जी के चरणों में पहुच गए गुरूजी ने उनसे मुल्तान के समाचार पूछे और कोई विशेष घटना हो तो बताने के लिए कहा फरीद ने शम्स जी के दरवार का वर्णन किया और सारी हकीकत बताई !
गुरूजी बोले में भी बहा होता तो उस पवित्र दरवाजे से गुजरता !तुम कितने भाग्यशाली हो फरीद !की तुमको उस पवित्र दरवाजे से गुजरने का सुअवसर प्राप्त होता !


सद्गुरु की लीला बड़ी अजीब होती हैं शिष्य को पता भी नहीं चलता और बे उसकी कसोटी कर लेते हैं फरीद तो सत शिष्य थे उनको अपने गुरूजी के प्रति अनन्य भक्ति थी गुरुदेव के शब्द सुनकर वे बोले !

हे गुरुदेव में तो उस रास्ते से नहीं गुजरा में तो केवल आपके द्वार से गुजरा हूँ एक बार मैने आपकी शरण ली हैं तो अब और किसी की शरण मुझे नहीं जाना हैं !

यह सुनकर ख्वाजा बहायुदीन की आँखों में प्रेम उमड़ आया !

शिष्य की भक्ति और अनन्य प्रेम शरणागति देखकर उन्होंने उसे छाती से लगा लिया उनके दिल से आशीर्वाद निकल पड़े ,!

फरीद शम्स तबरेज का दरवाजा तो केवल एक ही दिन खुला था परन्तु तुम्हारा दरवाजा तो ऐसा खुलेगा की उसमे से जो हर गुरुवार को गुजरेगा वह सीधा स्वर्ग में जायेगा !


आज भी पाकिस्तान के पाक पट्टन कस्बे में बने हुए बाबा फरीद के दरवाजे में से हर गुरुवार को गुजरकर हजारो यात्री अपने को धन्यभागी मानते हैं ! यह हैं गुरूजी के प्रति अनन्य निष्ठा की महिमा

धन्यभागी हैं फरीद जेसे सत शिष्यों को की जिन्होंने सद गुरु के चरणों में अपने जीवन की बाग़ डोर हमेशा के लिए सोंफ दी और निश्चिंत हो गए!


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